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हम जेंडर-विभेदी सीमांकन कर रहे हैं
ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत है यह हर रोज इम्तिहान लेती है, इन्हीं इम्तिहानों को रोज़ पास करना हमारा लक्ष्य है वरना हताशा हमको घेर लेगी .
इस आलेख के ज़रिये मैं कामकाजी महिलाओं की हताशा भरी सोच और यथार्थ को रेखित करना चाहतीं हूँ समाज और महिलाएं स्वयं भी किसी कार्य विशेष अथवा /संगठन/संस्थान/संस्था विशेष पर पुरुषों के एकाधिकार समझतें हैं जो कदापि सही नहीं है . ठीक बात तो यह है कि :-"हमारे अवदान से किसी कार्य विशेष अथवा /संगठन/संस्थान/संस्था को पहचान मिलती है न कि जेंडर के आधार पर"कोरी बकवास नहीं सच है कि जेंडर-विभेदी सोच हो सकती है न कि सामाजिक,सांस्कृतिक,संगठनात्मक संरचनाएं . इसे कई महिलाओं ने सिद्ध कर दिया है फिर भी हम जेंडर-विभेदी सीमांकन कर रहे हैं और इस तरह के विचारों को ढो रहें हैं
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