सभी अपना अपना नेता चुनने में व्यस्त थे , किसी को 'प्रियंका गाँधी '
का रंग रूप लुभा रहा है तो कोई 'राहुल गाँधी ' पर आकर्षित है .वही
कुछ इसे भी है जो बुजुर्गो को अपना आइडियल मानते है . कुल मलकर नेता
बन्ने के लिए अब काबिलियत से ज़्यादा इन्सान के पर्सनालिटी देखि जा रही
है . पर सावधान दोस्तों ये कोई रंग मन्च नहीं बल्कि , ये हमारा वतन
है . इसलिये देश का कॅप्टन चुनने से पहले एक बार जरुर सोचे के जैसे
आप इस देश का राजा बना रहे है क्या वाकई वो इस लायक है या नही इस बात की तस्दीक़ करने के लिए आपको इनके व्यक्तित्व में झांकना होगा। कुछ नुस्खे मैं सुझाती रहीं हूँ आज रिजल्ट आने पर देखिये मेरे नुस्खे शायद अगले किसी चुनाव में काम आएं
साभार:inder1234.instablogs.com
1: किसी भी नेता में बेकाबू बोलनें की आदत तो नहीं है
2: अपने भाषण में जाती-वर्ग-सम्प्रदाय का ज़िक्र करने वाला न हो
3:देश की आर्थिक परिस्थितियों के लिए उसका चिंतन कैसा है ।
4: किसी भी प्रतिस्पर्धी के विरुद्ध नेगेटिव न हो
5: नई जनरेशन के लिए किस तरह का संदेश दे रहें हैं ।
1: किसी भी नेता में बेकाबू बोलनें की आदत तो नहीं है
2: अपने भाषण में जाती-वर्ग-सम्प्रदाय का ज़िक्र करने वाला न हो
3:देश की आर्थिक परिस्थितियों के लिए उसका चिंतन कैसा है ।
4: किसी भी प्रतिस्पर्धी के विरुद्ध नेगेटिव न हो
5: नई जनरेशन के लिए किस तरह का संदेश दे रहें हैं ।
मेरे इस आलेख के पूरा होने तक लोकसभा चुनावों के परिणाम लगभग सामने हैं । अधिसंख्यक मतदाताओं नें इसी तरह से वोट किए हैं जो इस बात का प्रमाण है की अब भारतीय वोटर सही दिशा में सोच रहा है । सामप्रदायिकता के ख़िलाफ़ वोटर बोल रहा है। झूठ को आइना दिखा रहा है । वोटर स्थायित्व को पसंद करता है। इतना ही नहीं वोटर किसी मुगालते में भी नहीं हैं बल्कि मीडिया को भी भ्रमित करने की ताक़त है इस जन-शक्ति में । सच उसने {भारतीय वोटर ने } एक्जिट पोल में भी नहीं बताया ।
विजेता किंतु सहजता का सागर
शायद जनता एन डी ए की उस बात को अन देखा कर गई कि मनमोहन कमजोर प्रधान मंत्री थे
विजेता किंतु सहजता का सागर
शायद जनता एन डी ए की उस बात को अन देखा कर गई कि मनमोहन कमजोर प्रधान मंत्री थे
फोटो : साभार गूगल
Achchee Soch badhaai ho
ReplyDeleteमैं भी नई-ब्लॉगर हूँ कभी
ReplyDeleteदेखिये मेरा ब्लॉग ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
सादर
अंशु जबलपुर
ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
ReplyDeleteमैं भी नई-ब्लॉगर हूँ कभी
ReplyDeleteदेखिये मेरा ब्लॉग ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
सादर
अंशु जबलपुर
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteनहीं अंशु,
ReplyDeleteसबसे पहला तो आप ये अंदाजा लगाईये कि वोट कितने प्रतिशत पड़े? शहरी लोगों को वोट देने जाने में लाज लगती है, उसके बाद बदलाव की उम्मीद करना ही गलत है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि मनमोहनजी एक कमजोर प्रधानमंत्री थे, आपकी पोस्ट पर दिख रहा कार्टून भी यही साबित कर रहा है।
:)
॥दस्तक॥,
गीतों की महफिल,
तकनीकी दस्तक
nahar ji ne sahee kahaa anshu
ReplyDeleteअंशु
ReplyDeleteआलेख भी अच्छा है ब्लॉग भी. इस बात के लिए साधुवाद की ब्लॉग की दुनिया में धमाके दार एंट्री ली है आपने . रहा सवाल -विषय चुनाव का तो आप पत्रकार हैं कमीं कदापि न होगी . अशेष शुभ-कामनाएं