Sunday, May 17, 2009

गिरीश भैया की एक कविता



पाठको गिरीश बिल्लोरे मुकुल की कविता इस समय की कविता है सबकी कविता है
आशा है आप को भाएगी
बेटियाँ जो आपके घर को सजातीं हैं
बेटियाँ जो आपको सपने सुझातीं हैं
जी हाँ
उन्हीं बेटियों का
पीछा करतें हैं
कोख से
उसके बिदा होने तक
बेटियाँ जो दुनिया बनातीं हैं उनको
वस्तु की तरह देखते तुम
पिता-भाई-पति-चाचा-दादा नहीं
तुम जो माँ होने का दावा करतीं हो
चीख-चीख के तुम
तब न चीखीं जब मुन्ने से पहले
तुम्हारे गर्भ में आई
मेरी बहनों को
धन के लोभी हत्यारी डाक्टर को
सौंप आयीं थी
किससे अपना नाता बनाऊं
किसे अपना रक्त -सम्बन्धी बताऊँ
तुम सब कहो
चुप क्यों हो कहो न

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