शुक्ल पूर्णिमा कों, रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है इस दिन दो त्यौहार साथ मनाए जाते है श्रावणी और रक्षा बंधन श्रावणी ब्राह्मणत्व के अभिवर्धन का, वेद उपाकर्म के शुभारंभ का, धरती को हरीतिमा के कवच से आच्छादित करने का प्रतीक पर्व है । रक्षा बंधन बहन की ,राष्ट्र की रक्षा हेतु बंधन से जुड़ने का प्रतीक त्यौहार है यह धार्मिक स्वाध्याय के प्रचार का, विद्या विस्तार का पर्व भी है इस दिन यागोपवित बदला जाता है एवं द्विजत्व को धारण किया जाता है वेद मंत्रों से मंत्रित किया जाता है नारी जाती पर कोई विप्पत्ति आए,इसके लिये संकल्पित होने,संस्कृति की शालीनता को बचाए रखने हेतु संकल्पबद्ध होने का भी यह पर्व है इस दिन वेद पूजा होती है आज तो यागोपवित बदलने जैसे कुछ कर्मकांड एवं बहन द्वारा राखी बांधने तक यह सीमित होकर रह गया है इसकी गरिमा पुनः स्थापित होनी चाहिए ।
वाड्मय खंड ३६(४.67)निवेदन: मैं एक नई ब्लॉगर हूँ अभ्यास हेतु लिखी गयी यह पोस्ट समयानुकूल नहीं है किंतु सार्वकालिक उद्धहरण _अवश्य है।
आपकी दी हुई जानकारी सचमुच सर्वकालिक है , सही सन्दर्भों के साथ आप कि ये अभ्यास पोस्ट भी शानदार है . लगे रही
ReplyDeleteप्रेरक पोस्ट, पढकर प्रसननता हुई। आपसे निवेदन है कि इस अलख को जगाए रखें।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
"आज तो यागोपवित बदलने जैसे कुछ कर्मकांड एवं बहन द्वारा राखी बांधने तक यह सीमित होकर रह गया है इसकी गरिमा पुनः स्थापित होनी चाहिए"
ReplyDeleteसही कहा.
बहुत बढ़िया जानकारी दी आपने अंशु।
ReplyDeleteधन्यवाद
शीर्षक देख कर चौंक गया कि अभी राखी की पोस्ट कैसे, पर नीचे आपका निवेदन देखकर समझ में आ गया।
॥दस्तक॥,
गीतों की महफिल,
तकनीकी दस्तक
बढियां ! आगे बढ़ें!
ReplyDeleteयागोपवित LIKHANE ME GALATEE KEE HAI
ReplyDeleteKINTU POST ACHCHHEE HAI
यानी यज्ञोपवीत लिखना था
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